Friday, December 18, 2015

महादेव के अंशावतार हैं अश्वत्थामा -FROM "DAINIK BHASKAR"

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BELOW ARTICLE IS FROM AN ILLUSTRIOUS NEWS PAPER "DAINIK BHASKAR"

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महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में ऐसे अनेक पात्र हैं, जिनके बारे में लोग जानना चाहते हैं। अश्वत्थामा भी उन्हीं में से एक हैं। अश्वत्थामा महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। हिंदू धर्म में जिन 8 महापुरुषों को अमर माना गया है, अश्वत्थामा भी उन्हीं से से एक है। मृत्यु से पहले दुर्योधन ने अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति बनाया था। अश्वत्थामा से जुड़ी ऐसी अनेक रोचक बातें हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको वही बातें बता रहे हैं-


महादेव के अंशावतार हैं अश्वत्थामा

महाभारत के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अच्चै:श्रवा अश्व के समान शब्द किया, इसी कारण उसका नाम अश्वत्थामा हुआ। वह महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुआ था। अश्वत्थामा महापराक्रमी था। युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था। मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है। इनका नाम अष्ट चिरंजीवियों में लिया जाता है। इस मान्यता से जुड़ा एक श्लोक भी है-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ 
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात- अश्वथामा, बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

अश्वत्थामा को अधिक ज्ञान देना चाहते थे द्रोणाचार्य

महाभारत के अनुसार, द्रोणाचार्य जब कौरवों व पांडवों को शिक्षा दे रहे थे, तब उनका एक नियम था। उसके अनुसार, द्रोणाचार्य ने अपने सभी शिष्यों को पानी भरने का एक-एक बर्तन दिया था। जो सबसे पहले उस बर्तन में पानी भर लाता था, द्रोणाचार्य उसे धनुर्विद्या के गुप्त रहस्य सिखा देते थे। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर विशेष प्रेम था, इसलिए उन्होंने उसे छोटा बर्तन दिया था। 
जिससे वह सबसे पहले बर्तन में पानी भर कर अपने पिता के पास पहुंच जाता और शस्त्रों से संबंधित गुप्त रहस्य समझ लेता था। अर्जुन ने वह बात समझ ली। अर्जुन वारुणास्त्र के माध्यम से जल्दी अपन बर्तन में पानी भरकर द्रोणाचार्य के पास पहुंच जाते और गुप्त रहस्य सीख लेते। इसीलिए अर्जुन किसी भी मामले में अश्वत्थामा से कम नहीं थे।

जब अश्वत्थामा ने चलाया नारायण अस्त्र

युद्ध में जब धृष्टद्युम्न ने छल से द्रोणाचार्य का वध कर दिया थो अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हुए। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने पांडवों पर नारायण अस्त्र चलाया। इस अस्त्र के प्रभाव से पांडवों की सेना में खलबची मच गई। अश्वत्थामा ने इस अस्त्र के बारे में दुर्योधन को बताया कि- यह अस्त्र गुरु द्रोण को स्वयं भगवान नारायण ने दिया था। यह शत्रु का नाश किए बिना नहीं लौटता। नारायणास्त्र से अनेक प्रकार के दिव्यास्त्रों का नाश भी संभव है।
जब श्रीकृष्ण ने देखा कि नारायण अस्त्र से सेना भाग रही है और पांडवों के प्राण भी संकट में हैं तो उन्होंने कहा कि सभी अपने-अपने रथों व अन्य सवारियों से उतर कर, अपने शस्त्रों को नीचे रखकर इस अस्त्र की शरण में चले जाओ। नारायण अस्त्र की शांति का यही एकमात्र उपाय है। सभी ने श्रीकृष्ण की यह बात मान ली। इस प्रकार नारायण अस्त्र का प्रकोप शांत हुआ और पांडवों के प्राण बच गए।

Picture from Google

जब श्रीकृष्ण-अर्जुन पर नहीं हुआ आग्नेय अस्त्र का असर

नारायण अस्त्र के विफल होने पर अश्वत्थामा ने आग्नेयअस्त्र का प्रयोग किया। ये अस्त्र भी महाभयंकर था। इसकी अग्नि से पांडवों की एक अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई। उस अस्त्र के प्रभाव से हवा गरम हो गई। बड़े-बड़े हाथी चारों और चिघांड़ते हुए गिरने लगे। तब अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र चलाते ही फिर से हवा गति से चलने लगी। अर्जुन, श्रीकृष्ण व उनके रथ पर भी आग्नेय अस्त्र का कोई प्रभाव नहीं हुआ।
अर्जुन व श्रीकृष्ण पर आग्नेय अस्त्र का कोई भी प्रभाव न होते देख अश्वत्थामा को बहुत आश्चर्य हुआ। तभी महर्षि वेदव्यास वहां आए और उन्होंने अश्वत्थामा को बताया कि श्रीकृष्ण व अर्जुन भगवान नर-नारायण के अवतार हैं। उन पर किसी भी अस्त्र का प्रभाव नहीं हो सकता। पूर्व समय में भगवान नारायण ने तपस्या करके भगवान महादेव से अनेक वरदान प्राप्त किए हैं। उसी के प्रभाव से उन पर विजय पाना संभव नहीं है। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर अश्वत्थामा रणभूमि से चले गए।

अश्वत्थामा ने मांग लिया कृष्ण का सुदर्शन चक्र

एक बार अश्वत्थामा द्वारिका गए। भगवान कृष्ण ने उसका बहुत स्वागत किया और उसे अतिथि के रूप में अपने महल में ठहराया। कुछ दिन वहां रहने के बाद एक दिन अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण से कहा कि वो उसका अजेय ब्रह्मास्त्र लेकर उसे अपना सुदर्शन चक्र दे दें। भगवान ने कहा ठीक है, मेरे किसी भी अस्त्र में से जो तुम चाहो, वो उठा लो। मुझे तुमसे बदले में कुछ भी नहीं चाहिए। अश्वत्थामा ने भगवान के सुदर्शन चक्र को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ।
उसने कई बार प्रयास किया, लेकिन हर बार उसे असफलता मिली। उसने हारकर भगवान से चक्र न लेने की बात कही। अश्वत्थामा बहुत शर्मिंदा हुआ। वह बिना किसी शस्त्र-अस्त्र को लिए ही द्वारिका से चला गया।

कौरवों का अंतिम सेनापति था अश्वत्थामा

जब भीम ने गदा युद्ध में दुर्योधन की जांघें तोड़ दी और मरने के लिए छोड़ दिया, तब वहां अश्वत्थामा, कृपाचार्य व कृतवर्मा आए। दुर्योधन को उस अवस्था में देख अश्वत्थामा ने प्रण किया कि वह पांडवों से बदला लेगा। दुर्योधन के कहने पर कृपाचार्य ने अश्वत्थामा को सेनापति बनाया। अश्वत्थामा ने सोचा कि रात के समय पांडव आदि वीर विजय प्राप्त कर अपने-अपने शिविरों में आराम कर रहे होंगे। अत: इसी अवस्था में उनका वध करना संभव है। (श्रीकृष्ण व पांडव उस समय कौरव शिविर में थे, ये बात अश्वत्थामा नहीं जानता था)। कृपाचार्य ने अश्वत्थामा से कहा कि रात्रि में सोते हुए वीरों पर प्रहार करना नियम विरुद्ध है, लेकिन अश्वत्थामा ने कृपाचार्य की बात नहीं मानी। अंत में कृपाचार्य व कृतवर्मा भी अश्वत्थामा का साथ देने के लिए राजी हो गए।

महादेव से युद्ध किया था अश्वत्थामा ने

पांडवों से बदला लेने के उद्देश्य से अश्वत्थामा जब रात के समय उनके शिविर तक पहुंचा। तो उसने देखा कि पांडवों के शिविर के बाहर एक विशालकाय पुरुष दरवाजे पर खड़ा है। उसने बाघ तथा हिरण की खाल पहन रखी है। उसकी अनेक भुजाएं हैं और उन भुजाओं में तरह-तरह के शस्त्र हैं। उसके मुख से आग की लपटें निकल रही हैं। 
उस पुरुष के तेज से हजारों विष्णु प्रकट हो जाते थे। वह स्वयं भगवान महादेव ही थे। महादेव के उस भयंकर रूप को देखकर भी अश्वत्थामा घबराया नहीं और उन पर दिव्यास्त्रों से प्रहार करने लगा, लेकिन उन अस्त्रों का महादेव पर कोई असर नहीं हुआ। यह देख अश्वत्थामा भगवान शंकर की उपासना करने लगा और स्वयं की बलि देने लगा।
तब महादेव ने अश्वत्थामा से कहा कि श्रीकृष्ण ने तपस्या, नियम, बुद्धि व वाणी से मेरी आराधना की है। इसलिए उनसे बढ़कर मुझे कोई भी प्रिय नहीं है। पांचालों की रक्षा भी मैं उन्हीं के लिए कर रहा था। किंतु कालवश अब ये निस्तेज हो गए हैं, अब इनका जीवन शेष नहीं है। ऐसा कहकर महादेव ने अश्वत्थामा को एक तलवार दी और स्वयं को अश्वत्थामा के शरीर में लीन कर दिया। इस प्रकार अश्वत्थामा अत्यंत तेजस्वी हो गया।

अश्वत्थामा ने किया था द्रौपदी के पुत्रों का वध

महादेव से शक्ति प्राप्त कर अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में प्रवेश किया। अश्वत्थामा ने सबसे पहले द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न को पीट-पीट कर मार दिया। इसके बाद अश्वत्थामा ने उत्तमौजा, युधामन्यु, शिखंडी आदि वीरों का भी वध कर दिया। तब अश्वत्थामा को रोकने के लिए द्रौपदी के पुत्र आए, लेकिन उसने महादेव की तलवार से उनका भी वध कर दिया।
देखते ही देखते अश्वत्थामा ने पांडवों की बची हुई सेना का भी सफाया कर दिया। इस प्रकार का भयंकर कर्म करने के बाद अश्वत्थामा शिविर से बाहर आया और उसने पांचाल वीरों व द्रौपदी के पुत्रों के वध के बारे में कृतवर्मा व कृपाचार्य को बताया। तीनों ने निश्चय किया कि ये समाचार तुरंत ही दुर्योधन को बताना चाहिए।
ऐसा विचार कर ये तीनों दुर्योधन के पास पहुंचे। उस समय तक दुर्योधन ने प्राण नहीं त्यागे थे। दुर्योधन के पास जाकर अश्वत्थामा ने उसे बताया कि इस समय पांडव पक्ष में केवल श्रीकृष्ण, सात्यकि और पांडव ही शेष बचे हैं, शेष सभी का वध हो चुका है। ये समाचार सुनकर दुर्योधन प्रसन्न हुआ पर थोड़ी ही देर में उसके प्राण निकल गए।

श्रीकृष्ण ने दिया था अश्वत्थामा को श्राप

जब अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया, तब पांडव क्रोधित होकर उसे ढूंढने निकले। अश्वत्थामा को ढूंढते हुए वे महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचे। अश्वत्थामा ने देखा कि पांडव मेरा वध करने के लिए यहां आ गए हैं तो उसने पांडवों का नाश करने के लिए ब्रह्मास्त्र का वार किया। श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चलाया। दोनों ब्रह्मास्त्रों की अग्नि से सृष्टि जलने लगी। सृष्टि का संहार होते देख महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन व अश्वत्थामा से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र लौटाने के लिए कहा।
अर्जुन ने तुरंत अपना अस्त्र लौटा लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था। इसलिए उसने अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदल कर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी और कहा कि मेरे इस अस्त्र के प्रभाव से पांडवों का वंश समाप्त हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा कि तुम्हारा अस्त्र अवश्य ही अचूक है, किंतु उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न मृत शिशु भी जीवित हो जाएगा।
ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी से बात नहीं कर पाओगे। तुम्हारे शरीर से पीब व रक्त बहता रहेगा। इसके बाद अश्वत्थामा ने महर्षि वेदव्यास के कहने पर अपनी मणि निकाल कर पांडवों को दे दी और स्वयं वन में चला गया। अश्वत्थामा से मणि लाकर पांडवों ने द्रौपदी को दे दी और बताया कि गुरु पुत्र होने के कारण उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित छोड़ दिया है।


Saturday, November 7, 2015

!! ऐसे कुछ कार्य जो दीपोत्सव में नहीं करना चाहिए !!

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                   WE WISH YOU ALL OUR READERS 

                    A VERY HAPPY AND PROSPEROUS 

                                   DEEPAVALI 
                                         AND 
                        COMING NEW YEAR 2016 





http://hindi.speakingtree.in/spiritual-blogs/seekers/mysticism/diwali-ke-dino-mein-kya-kaam-nahi-karne-chahiye

SPEAKING TREE IS AN EXCELLENT SPIRITUAL WEBSITE- BELOW ARTICLE IS TAKEN FROM THIS WEBSITE FOR OUR READERS. 

!!READ, APPLY AND ENJOY !!

धार्मिक दृष्टि से ये सभी त्यौहार काफी अहम होते हैं, इन पांचों दिनों में व्यक्ति को कठोर नियमों का पालन करना चाहिए। हिन्दू शास्त्रों में ऐसे कुछ कार्य बताए गए हैं जिन्हें इन पांच दिनों में पूरी तरह निषेध माना गया है। आइए जानते हैं क्या हैं वो निषेध कार्य।
देर तक सोना  
दीपोत्सव के इन पांच दिनों के दौरान व्यक्ति को सुबह ज्यादा देर तक सोने से परहेज करना चाहिए। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार दीपावली के दिनों में व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर घर की साफ-सफाई कर लेनी चाहिए। जो लोग सूर्योदय के बाद तक सोते रहते हैं उन्हें महालक्ष्मी की कृपा नहीं मिल पाती।
अपने से बड़ों का अपमान ना करें 
आपको इन शुभ दिनों में अपने माता-पिता या घर के किसी भी वरिष्ठ सदस्य का अपमान नहीं करना चाहिए। बुजुर्गों को अपशब्द ना बोलें।
गंदगी से दूर रहें
दिवाली तो है ही साफ-सफाई और स्वच्छता का त्यौहार। जहां सफाई होती है वहां लक्ष्मी का वास होता है इसलिए घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


क्रोध ना करें
क्रोध करने से बुद्धि का नाश होता है इसलिए बेवजह क्रोध करने से खुद को बचाएं। जो लोग इन दिनों में क्रोध करते हैं, चीखते-चिल्लते हैं उनसे लक्ष्मी जी नाराज हो जाती है।
शाम के समय ना सोएं
तबियत खराब होने, गर्भावस्था के समय या फिर अन्य किसी विशेष परिस्थिति के अलावा दोपहर में सोने से परहेज करें। स्वस्थ व्यक्ति अगर दिन के समय सोता है तो शास्त्रों के अनुसार उसे दरिद्री का सामना करना पड़ता है।
नशा करने से बचें
अक्सर दिवाली के दिन लोग मदिरापान करते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार जो लोग दिवाली के दिन शराब पीते हैं वे हमेशा दरिद्र रहते हैं। इसलिए नशे का सेवन करने से बचें।

WE WISH YOU ALL OUR READERS A VERY HAPPY AND PROSPEROUS DEEPAVALI AND COMING NEW YEAR 2016 



Friday, September 18, 2015

जय जय श्री गणेश-श्री गणेश आरती-श्री गणेश गायत्रि -गणेश जी के द्वादश नाम

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व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ: | 
निर्विघ्नम  कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सवर्दा ||



श्री गणेश आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा...

एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा...

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥

दीनन की लाज रखो, शम्भु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊँ बलीहारी॥ जय...

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दोहा


श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥
श्री गणेश स्तुति

गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विध्न टरें।
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥


ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें ।
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥



गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विध्न भागजा दूर परें ॥



भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें ।
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥



श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विध्न टरें ।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥



देखि वेद ब्रह्माजी जाको विध्न विनाशन रूप अनूप करें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥



चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें ।



गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥
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श्री गणेश गायत्रि 

ऊँ भुर्व भूवः स्व एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्। 
ऊँ भुर्व भूवः स्व एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

ऊँ भुर्व भूवः स्व महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ऊँ भुर्व भूवः स्व गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
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गणेश जी के द्वादश नाम 

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।
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श्री नारद मुनि द्वारा गणेश जी की स्तुति 


प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यायुष्कामार्थसिद्धये ॥१॥
प्रथमं वक्रतुण्डं  एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥२॥
लम्बोदरं पञ्चमं  षष्ठं विकटमेव  ।
सप्तमं विघ्नराजं  धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥३॥
नवमं भालचन्द्रं  दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥४॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
  विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिश्च जायते ॥५॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥६॥
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं  लभते नात्र संशयः ॥७॥
अष्टाभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥८॥

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गणेश जी के 108 नाम (108 Names of lord Ganesha in Hindi)
1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक
2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाला
5. एकाक्षर : एकल अक्षर
6. एकदन्त : एक दांत वाले
7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखें वाला
8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान
9. गजनान : हाथी के मुख वाले भगवान
10. गजवक्र : हाथी की सूंड़ वाला
11. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुँह है
12. गणाध्यक्ष : सभी गणों के मालिक
13. गणपति : सभी गणों के मालिक
14. गौरीसुत : माता गौरी के पुत्र
15. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले
16. लम्बोदर : बड़े पेट वाले
17. महाबल : बलशाली
18. महागणपति : देवो के देव
19. महेश्वर : ब्रह्मांड के भगवान
20. मंगलमूर्त्ति : शुभ कार्य के देव
21. मूषकवाहन : जिसका सारथी चूहा
22. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता
23. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले
24. शूपकर्ण : बड़े कान वाले
25. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु
26. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
27. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी
28. सुरेश्वरम : देवों के देव
29. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड़
30. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता : अनन्त देव
32. अमित : अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना
34. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु
35. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले
36. भीम : विशाल
37. भूपति : धरती के मालिक
38. भुवनपति : देवों के देव
39. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक
41. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले
42. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरि
43. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक
44. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
45. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक : दान देने वाला
47. दूर्जा : अपराजित देव
48. द्वैमातुर : दो माताओं वाले
49. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले
50. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे
51. गदाधर : जिसका हथियार गदा है
52. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता
53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी
54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला
55. हेरम्ब : माँ का प्रिय पुत्र
56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला
57. कवीश : कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति : यश के स्वामी
59. कृपाकर : कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरि आंख वाले
61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला
62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य
63. मनोमय : दिल जीतने वाले
64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले
65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है
66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता
67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो
68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा
70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला
72. प्रमोद : आनंद
73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व
74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला
75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहेता
76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता
77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता
78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
79. ओमकार : ओम के आकार वाला
80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं
82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले
84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई
85. सुमुख : शुभ मुख वाले
86. स्वरुप : सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो
88. उद्दण्ड : शरारती
89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे
90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी
93. वीरगणपति : वीर प्रभु
94. विद्यावारिधि : बुद्धि की देव
95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता : बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले
98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक
99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान
100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला
101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
102. विकट : अत्यंत विशाल
103. विनायक : सब का भगवान
104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा : संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु

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जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

Today's Blog - हमारे BLOG-ARTICLES में अधिकतर ज्ञानवर्धक जानकारिया दी जाती है, तथा आलेख जहां से भी लिए जाते है, उन स्थानों व लेखकों का नाम-आदि भी दिया जाता है. क्योकि इस के द्वारा हम अपने पाठकों के लाभार्थ ही आलेख POST करते है. यदि किसी भी लेखक या संस्था को कोई शिकायत हो तो कृपया हमे बता दे हम POST हटा लेंगे

जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

https://www.youtube.com/watch?v=L9FekdPOs1M


http://www.greenmesg.org/mantras_slokas/sri_ganesha-ganesha_pancharatnam.php


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥



जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम
जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम
जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥



जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,


जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम

जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम,

जय गणेश रक्षमाम,
जय गणेश रक्षमाम,

जय गणेश रक्षमाम,
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Wednesday, September 9, 2015

दोस्तों अपने शरीर को स्वस्थ्य रखिए और पैसे भी बचाईये !!

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आलेख और निवेदन - एस्ट्रोलोजर - आशुतोष द्वारा 



जो लोग रोज़ सिगरेट पीते है, शराब पीते है, या तंबाकू के पाउच खाते है वे आख़िर समझ ही नही पाते कि वे 
लोग किस गड्डे  में गिरने जां रहे है, और अपने साथ साथ अपने परिवार को भी घसीट रहे है !! नीचे एक 
उदाहरण दे रहा हूँ, गौर कीजिये --
मान लीजिए एक व्यक्ति रोज़ 50/- रुपये नशा करने में खर्च करता है. अतः 30 दिन में 1500/- रुपए, और 365 
दिनों में, याने एक साल में 18,250/- रुपये खर्च करता है. 
अर्थात, जो लोग पिछले 5 सालों से नशा कर रहे होंगे, उनका, कम से कम 91,250/- रुपये ( app. ONE 
LAKH) खर्च हो चुका होगा
दूसरी तरफ़, यह भी सर्वं-विदित है कि तंबाकू से कैंसर और शराब  से लीवर जैसी गंभीर बीमारिया होती ही है. 
( बीमारी कभी भी अचानक हो जाती है, एक महीने में भी, एक साल में भी या कभी भी )
एक सामान्य अध्यनन के अनुसार, इन बीमारियों में एक साल में 15 से 20 लाख रुपये खर्च हो सकता है. इसके 
अलावा यदि इलाज लम्बा चला या लीवर-ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा तो 15-20 लाख रुपये और लगेगे ! 
अर्थात, हर नशा करने वाला यह सोच ही नही पाता कि वो कितनी बड़ी रिस्क ले रहा है और ख़ुद को व पूरे 
परिवार को कितनी बड़ी आर्थिक और शारीरिक मुसीबत में डाल  रहा है. 






बीमार होने के बाद  पूरे परिवार का जीवन यापन बदल जाता  है. , सूख-शान्ति छीन  जाती है, परिवार के लोग 
और रिश्तेदार इधर-उधार से इलाज के लिए पैसा जुगाड  करने में लग जाते है, जमा किया हुआ पैसा, या, 
जमीन-जायदाद सब खतम होने लगता है, और अंत में उस व्यक्ति का जीवन भी खतम ही हो जाता है. 
चलिए अब हम ये मान ले कि एक व्यक्ति जो पिछले 5 वर्षो से नशा कर रहा था, अगले साल बीमार हो गया. 
याने, उसको कैंसर हो गया. ठीक एक साल बाद, वो व्यक्ति अपनी बीमारि से जूझता  हुआ चल बसा. अर्थात - 
यदि हम ऊपर उदहरण के आधार पर खर्च का हिसाब करे तो इस व्यक्ति ने 5 वर्षो में 91250/- रुपये नशा करने 
में खर्च कर दिए. उसके बाद एक साल बीमार रहा, अर्थात कम से कम 15 लाख तो खर्च होंगे ही. 
91250/- + 15,00000/- याने कुल 16 लाख रुपये खर्च हो गए और परिवार ने व्यक्ति भी खो दिया. 





अर्थात इन 6 वर्षो में उस व्यक्ति के कारण --2.66 लाख रुपये साल के हिसाब से पैसा खर्च हो गया. 
16,00000.00 / 6 साल = 2.66 लाख रुपये हर वर्ष )
हमने खर्च की गणना 5 वर्ष और बीमारी का अधिकतम समय एक वर्ष लिया है. इसमें यदि समय बढता है तो कुल खर्च भी उसी अनुपात में बढ ही जायेगा.


मेरे इस आलेख की गम्भीरता को देखते हुये यदि एक भी व्यक्ति ने नशा पूरी तरह छोड दिया तो मै जीत गया. 


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सभी चित्र गूगल से साभार लिए गए है. यदि किसी भी व्यक्ति या संस्था को शिकायत हो तो हमे बताये. 

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