Friday, June 27, 2014

श्रावण / सावन मास में सोमवार पूजा विधि (Saavan Monday Pooja Vidhi)

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AN ARTICLE FROM ASTROLOGER MR. LOKESH AGARWAL



श्रावण प्रारंभ: 13 जुलाई 2014, दिन रविवार, उत्तराषाढ नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य)

श्रावण का प्रथम सोमवार: 14 जुलाई 2014, 
द्वितीया तिथि, श्रावण नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी चन्द्र), सर्वार्थ सिद्धि योग (सुबह 05:12 - 11:42)

श्रावण का द्वितीय सोमवार: 21 अगस्त 2014, दशमी तिथि, कृतिका नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य) 
श्रावण का तृतीय सोमवार: 28 जुलाई 2014, प्रथमा तिथि, अश्लेशा नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी बुध)
नाग पंचमी : 01 अगस्त 2014, पंचमी तिथि, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य)
श्रावण का चतुर्थ सोमवार: 4 अगस्त 2014 , अष्टमी तिथि, स्वाती नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी राहु)
श्रावण अंत: 10 अगस्त 2014 

श्रावण / सावन मास में सोमवार पूजा विधि 

अभिषेक सामग्री:
दूध, दही, शहद, घी, बूरा अथवा चीनी, गंगाजल, बेल-पत्र, धतूरा, भांग, चन्दन, केसर, कर्पूर, पुष्प, काले तिल, अक्षत(चावल बिना टूटे), गंध

विधि:
सवेरे जल्दी उठकर नहाकर यथासंभव साफ सफेद वस्त्र पहनें। अगर सोमवार के व्रत रखें तो अति उत्तम होगा। पूजा की सम्पूर्ण सामग्री लेकर शिव मंदिर जाएँ (भक्तगण घर पर भी शिव पूजा कर सकते हैं)। सर्वप्रथम गौरी-गणेश का पूजन करें। 

1. अभिषेक के समय श्रीरुद्राष्‍टकम अथवा शिवतांडवस्‍तोत्रम का पाठ शिव को अत्‍यंत प्रसन्‍नता प्रदान करता है। परन्तु अगर आप इनका पाठ नहीं कर सकते तो "ॐ नमः शिवाय" का ही जप करें। यह शिव का सबसे सुन्दर तथा आसान मंत्र है।
2. सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करें 
3. जलस्नान के बाद शिवलिंग को दूध से स्नान कराएं। फिर से जल से स्नान कराएं।
4. दही स्नान के बाद घी स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं।
5. घी या घृत स्नान के बाद मधु यानी शहद से स्नान कराएं। शहद से स्नान कराकर जल से स्नान कराएं।
6. शहद स्नान के बाद शर्करा या शक्कर से स्नान कराया जाता है। इसके बाद जल स्नान कराएं।
7. आखिर में सभी पांच चीजों को मिलाकर पंचामृत बनाकर स्नान कराएं।
8. पंचामृत स्नान के बाद शुद्धजल से स्नान कराएं।
9. फिर कर्पूर से सुगंधित शीतल जल चढ़ाएं।
10. केसर को चंदन से घिसकर तिलक लगाएं।
11. थोड़े से अक्षत(चावल बिना टूटे) अर्पित करें, काले तिल अर्पित करें
12. पंचामृत पूजा के बाद धतूरा, भांग, बिल्वपत्र, अक्षत, पुष्प और गंध चढ़ावें।
13. इसके बाद धूप, दीप और नैवेद्य भगवान शिव को अर्पित करें।
14.vउसके बाद नंदीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय, कुबेर और कीर्तिमुख का पूजन करें।
15. अंत में पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांग और अपनी कामनाओं के लिए शिव से प्रार्थना करें।

मंत्र:
1. “ॐ नमः शिवाय”

2. “ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l
मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll”

3. “ऊँ त्रयम्बकम यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम, 
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात ॥”


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नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवायः॥



हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार।



मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवायः॥



चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म धारी शिव, आपको नमन है।



शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥



हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।



वषिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥



देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।



यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥



हे यज्ञ स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके य अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है।



पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ 


जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है। 

महादेवं महात्मानं महाध्यानपरायणम्।


महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ।।

शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम्।


शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः।।

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम्।


वामं शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः।।

यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः।


यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः।।

षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ।


शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ।।


चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।

जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।


जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ।।


निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।

त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महेश्वरमत: परम्।।
नमस्तेस्तु महादेव स्थावणे च तत: परम्।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम:।। 
नमस्ते परमानन्द नम: सोमर्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत:।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||


हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।
श्रावण मास में रोग निवारण 

विज्ञान और हम सब यह मानते हैं की सृष्टि तथा मानव शरीर पंच तत्वों के मिश्रण से बना है- अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश एवं जल। विधिवत सृष्टि संचालन तथा मानव शरीर संचालन के लिए इन तत्वों का संतुलन परम आवश्यक है। इन तत्वों के संतुलित रहने पर जिस प्रकार सृष्टि प्रसन्न रहती है उसी प्रकार, मनुष्य प्रसन्न तथा स्वस्थ/निरोगी रहता है। इन्हीं तत्वों के असंतुलित होने पर जिस प्रकार ज्वार-भाटा और अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती हैं उसी प्रकार मनुष्य रोगग्रस्त, चिड़चिड़ा, दुखों से पीड़ित एवं कांतिहीन हो जाता है।किसी भी एक तत्त्व की न्यूनता तथा अधिकता दोनों ही ख़राब है।

ये पँचों तत्व मूलत: ग्रहों, नक्षत्रों से ही नियन्त्रित रहते हैं. अतः अगर हम सामान्य भाषा में बात करें तो ग्रह ही हमारे शरीर को संचालित करते हैं तथा रोग भी उसी संचालन का एक अंग है।

ज्योतिष विज्ञान यह कहता है की अगर श्रावण के महीने में बाबा भोलेनाथ को विशेष रूप से प्रसन्न कर लिया जाए तो व्यक्ति इन पंचतत्वों तथा ग्रहों के असंतुलन के साथ साथ रोगों का भी निवारण कर सकता है।

रोग निवारण हेतु शिव पूजन 

1. श्रावण मास में हर मंगलवार को शिव पूजा (विशेषतः रुद्राभिषेक तथा महामृत्युंजय का जप) करने से रोगों का जल्दी निवारण होता है। याद रखें रोग निवारक पूजा में कनेर के पुष्प शिवजी को अवश्य अर्पित करें

2. किसी भी रोग से पूर्णत: मुक्ति के लिये श्रावण मास के प्रथम सोमवर से प्रत्येक सोमवार को शिव जी को कपूर युक्त जल से अभिषेक करें. अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र का निरंतर जाप करें.
" ऊँ ह्रौं जुं स: ऊँ त्रयम्बकम यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम,
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात स: जुं ह्रौं ऊँ ॥"
इस मंत्र जाप श्रावण मास के पश्चात भी पूरे वर्ष भर करते रहें. अवश्य स्वास्थ्य लाभ होगा.

3. श्रावण मास में हर गुरूवार को विशेष पूजा करने से आयु में वृद्धि होती है।

4. रोग निवारण हेतु महामृत्युंजय मंत्र जप करते हुए शहद से अभिषेक करने से रोग का नाश होता है

5. कुशोदक जल से अभिषेक करने से असाध्य रोग शांत होते हैं

6. दूध से अभिषेक करने से शुगर रोग (मधुमेह) रोग की शांति होती है

7. भगवान शिव के मृत्यंजय मंत्र "ॐ जूं सः" के दस हजार जप करते हुए घी की धारा से शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो मधुमेह (डाइबिटीज) रोग दूर होता है.

8. गाय के घी से अभिषेक करने से आरोग्य लाभ होता है

9. जो व्यक्ति हरी दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करता है उसे दीर्घायु प्राप्त होती है

10. लंबी या लाइलाज बीमारी से तंग हैं तो पंचमुखी शिवलिंग पर तीर्थ का जल अर्पित करने से रोगमुक्त होंगे।

11. ज्वर(बुखार) से पीडि़त होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से तुरंत लाभ मिलता है।

12. नपुंसक व्यक्ति अगर घी से भगवान शिव का अभिषेक करे व ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान हो जाता है और उसे पुरुषत्व की प्राप्ति होती है।

13. किसी अच्छे ज्योतिषी से अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर ये पता करे लें की आपके रोग का कारण कौन सा ग्रह है। उसके पश्च्यात उस ग्रह से सम्बन्धित तुला दान उस ग्रह के दिन/नक्षत्र वाले दिन करें। साथ में शिव रुद्राभिषेक करें तथा महामृत्युंजय जप का जप करें अथवा कराएं। रोग से अवश्य मुक्ति मिलेगी।

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Tuesday, June 24, 2014

वशीकरण मंत्र

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आचार्य चाणक्य कहते हैं की - 

लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् स्तब्धमंजलिकर्मणा,

मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम्।।


 जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख व्यक्ति को उसकी बात मान कर और विद्वान व्यक्ति को सच से वश में किया जा सकता

Wednesday, June 11, 2014

उलटा नाम जपत जग जाना, वाल्मीक भए ब्रह्म समाना



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http://www.nayaindia.com/buniyad/name-jpt-be-awakened-go-in-reverse-valmik-joins-spirit-175696.html


सोलह कलाओं से युक्त शरद पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि आदिकवि के रुप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत मे रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है। वाल्मीकि रामायण, जिसे कि आदि रामायण भी कहा जाता है और जिसमें भगवान श्रीरामचन्द्र के निर्मल एवं कल्याणकारी चरित्र का वर्णन है, के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियां प्रचलित है जिसके अनुसार उन्हें निम्नवर्ग का बताया जाता है जबकि वास्तविकता इसके विरुद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदुओं के द्वारा हिंदू संस्कृति को भुला दिये जाने के कारण ही इस प्रकार की भ्रांतियाँ फैली हैं। वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि ने लिखा है कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे।
किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहां का भील समुदाय असभ्य था और वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म ही उनके लिये जीवन यापन का मुख्य साधन था। हत्या जैसा जघन्य अपराध उनके लिये सामान्य बात थी। उन्हीं क्रूर भीलों की संगति में रत्नाकर पले, बढ़े, और दस्युकर्म में लिप्त हो गये।
युवा हो जाने पर रत्नाकर का विवाह उसी समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया और गृहस्थ जीवन में प्रवेश के बाद वे अनेक संतानों के पिता बन गये। परिवार में वृद्धि के कारण अधिक धनोपार्जन करने के लिये वे और भी अधिक पापकर्म करने लगे। एक दिन इनकी मुलाकात देवर्षि नारद से हुई। इन्होंने नारदजी से कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ है उसे निकाल कर रख दो नहीं तो तुम्हें जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।
देवर्षि नारद ने कहा, ”मेरे पास इस वीणा और वस्त्र के अलावा कुछ और नहीं है? तुम लेना चाहो तो इसे ले सकते हो, लेकिन तुम यह क्रूर कर्म करके भयंकर पाप क्यों करते हो?’ देवर्षि की कोमल वाणि सुनकर वाल्मीकि का कठोर हृदय कुछ द्रवित हुआ। इन्होंने कहा, ‘भगवन मेरी आजीविका का यही साधन है और इससे ही मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूं।’ देवर्षि बोले, तुम अपने परिवार वालों से जाकर पूछो कि वह तुम्हारे द्वारा केवल भरण पोषण के अधिकारी हैं या फिर तुम्हारे पाप कर्मों में भी हिस्सा बंटाएंगे। तुम विश्वास करो कि तुम्हारे लौटने तक हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे। वाल्मीकि ने जब घर आकर परिजनों से उक्त प्रश्न पूछा तो सभी ने कहा कि यह तुम्हारा कर्तव्य है कि हमारा भरण पोषण करो हम तुम्हारे पाप कर्मों में क्यों भागीदार बनें।
परिजनों की बात सुनकर वाल्मीकि को आघात लगा। उनके ज्ञान नेत्र खुल गये। वह जंगल पहुंचे और वहां जाकर देवर्षि नारद को बंधनों से मुक्त किया तथा विलाप करते हुए उनके चरणों में गिर पड़े और अपने पापों का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। नारदजी ने उन्हें धैर्य बंधाते हुए राम नाम के जप की सलाह दी। लेकिन चूंकि वाल्मीकि ने भयंकर अपराध किये थे इसलिए वह राम राम का उच्चारण करने में असमर्थ रहे तब नारदजी ने उन्हें मरा मरा उच्चारण करने को कहा। बार बार मरा मरा कहने से राम राम का उच्चारण स्वतः ही हो जाता है।
नारदजी का आदेश पाकर वाल्मीकि नाम जप में लीन हो गये। हजारों वर्षों तक नाम जप की प्रबल निष्ठा ने उनके संपूर्ण पापों को धो दिया। उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना दी। दीमकों के घर को वल्मीक कहते हैं। उसमें रहने के कारण ही इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। ये लौकिक छंदों के आदि कवि हुए। इन्होंने ही रामायण रूपी आदि काव्य की रचना की। वनवास के समय भगवान श्रीराम ने इन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया। सीताजी ने अपने वनवास का अंतिम समय इनके आश्रम में बिताया। वहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ। वाल्मीकि जी ने उन्हें रामायण का गान सिखाया। इस प्रकार नाम जप और सत्संग के प्रभाव से वाल्मीकि डाकू से ब्रह्मर्षि बन गये।
शिक्षा और महर्षि वाल्मीकि : महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के साथ एक आदर्श और संपूर्ण शिक्षक भी थे। उन्होंने लव और कुश को शस्त्र और शास्त्रों की शिक्षा प्रदान की  थी। उनका शिक्षा प्रदान करने का तरीका इतनी प्रभावी था कि इन दोनों राजकुमारों ने  छोटी सी उम्र में ही  असाधारण कुशलता हासिल की। इन दोनों राजकुमारों की शस्त्र कुशलता का परिचय इसी बात से मिल जाता है कि रणक्षेत्र में लक्ष्मण और महावीर हनुमान भी इनके सामने टिक नहीं पाए। अंततः भगवान राम को स्वयं युद्धक्षेत्र  में उतरना पड़ा। महर्षि वाल्मीकि की अद्भुत शिक्षा के कारण लव,कुश शस्त्रों के अतिरिक्त वेद-वेदांगो में भी पारंगत थे। यहां तक कि संगीत की विधा में भी ये राजकुमार अतुलनीय बन गए थे। रामदरबार में माता सीता की दारूण कथा के संगीतपूर्ण वर्णन ने सभी को आत्मावलोकन के लिए विवश कर दिया था। राजदरबार में सीता के साथ हुए अन्याय पर सभी का ध्यान गया। प्रजा में भी सीता की घर वापसी को लेकर बहस छिड़ी।  सामाजिक अन्याय के विरुद्ध संगीत के इतने प्रभावी इस्तेमाल का उदाहरण पूरी दुनिया में अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता। सामाजिक अन्याय के  खिलाफ संगीत को जनजागरण के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रेरणा महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी।
काव्य प्रस्फुटन का प्रसंग :  महर्षि वाल्मीकि अपने भीतर निहित काव्य प्रतिभा से पूरी तरह अपरिचित थे। एक रोचक प्रसंग के कारण वह अपनी इस प्रतिभा से परिचित हुए। कथा के अनुसार भगवान वाल्मीकि नित्यप्रति गंगा स्नान करने जाते थे। एक दिन वह अपने शिष्य महर्षि भारद्वाज के साथ गंगा-स्नान करने गए और निर्मल जलधारा को देखकर एक निश्चित स्थान पर स्नान करने का निर्णय लिया। जलधारा में उतरते समय वह क्रामक्रीड़ा में रत सारस के एक जोड़े को देखकर मन ही मन प्रसन्न हुए। इसी समय,एक बहेलिए द्वारा चलाए गए  तीर के  लगने से नर सारस की मौके पर ही मृत्यु हो गई। महर्षि को यह दृश्य देखकर बहुत आघात लगा। तीर चलाने वाला बहेलिया कुछ ही दूरी पर खड़ा था। उसको देखते ही महर्षि के मुख से यकायक यह श्लोक निकल आया -
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्त्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
अर्थात अरे बहेलिए, तूने काम मोहित होकर मैथुनरत क्त्रौंच पक्षी को मारा है, अब तुझे कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होगी।  ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” (जिसे कि “वाल्मीकि रामायण” के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और “आदिकवि वाल्मीकि” के नाम से अमर हो गये। अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड पण्डित थे। अपने वनवास काल के मध्य “राम” वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में भी गये थे-देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीक आश्रम प्रभु आए॥
तथा जब “राम” ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया तब वाल्मीकि ने ही सीता को प्रश्रय दिया था। उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि वाल्मीकि “राम” के समकालीन थे तथा उनके जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान वाल्मीकि ऋषि को था। उन्हें “राम” का चरित्र को इतना महान समझा कि उनके चरित्र को आधार मान कर अपने महाकाव्य “रामायण” की रचना की। भारत में उदात्त सामाजिक मूल्यों  की स्थापना में इस ग्रंथ की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।

पैरालिसिस का इलाज आपकी रसोई में

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http://thebhaskar.com/archives/1885


पैरालिसिस एक ऐसी बीमारी, जिसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आदमी ना जिंदा होता है और ना ही मरा हुआ। आधा शरीर काम करना बंद कर देता है। अचानक अपाहिज सा जीवन शुरू हो जाता है, डॉक्टर कहते हैं इसका कोई इलाज नहीं। है तो बहुत मंहगा है, लेकिन इलाज तो आपकी रसोई में ही मौजूद है।
औषधि नं-1
औषधि के लिये लहसुन बड़ी गांठ वाला जिसमें से अधिक रस निकाल सकें ले।
विधि- लहसुन की आठ कली लेकर छील लें फिर इसे बारीक चटनी की तरह पीस लें फिर गाय का दूध लेकर उबाल लें, अब थोड़ा सा दूध अलग कर लें उसमें शक्कर मिला दें, जब यह दूध हल्का गरम रह जाय तो इस दूध में लहसुन मिलाकर पी जायें, ऊपर से इच्छा अनुसार जितना चाहें दूध पियें। परंतु ध्यान रखें लहसुन कभी खौलते दूध में न मिलावें वरना उसके गुण नष्ट हो जायेंगे। दिन में दो बार ये विधि करें। इस प्रकार दिन में दो बार इसका सेवन करें। तीन दिन तक दोनों समय लेने के बाद इसकी मात्रा बढ़ाकर 9 या 10 कलियां कर दें। एक हफ्ते बाद कम से कम 20 कली लहसुन लें। इसी तरह तीन बाद फिर बढ़ाकर 40 कली का रस दूध से लें। इसके बाद अब इनकी मात्रा घटाने का समय है जैसे-जैसे बढ़ाया वैसे-वैसे ही घटाते जाना है तीन-तीन दिन पर यानी-
पहली बार – 8 कली लहसुन की लें लेत रहें
बार तीन दिन बाद-10 कली लहसुन की लें लेते रहें
बार 1 सप्ताह बाद – 20 कली लहसुन की लें लेते रहें
बार 1 सप्ताह बाद- 40 कली लहसुन की लें लेते रहें
इसका सेवन करने से और भी लाभ है पेशाब खुलकर होगा।
दस्त साफ होने लगेगी शरीर की चेतना शक्ति बढ़ने लगेगी तथा पक्षाघात का असर धीरे-धीरे कम होने लगेगा। अगर उच्चरक्त चाप है तो यह प्रयोग काफी कारगर सिद्ध हो सकता है।
औषधि नं-2
मोटी पोथी वाला 1 मोटा दाना लहसुन का लेकर छीलकर पीस लें बारीक और इसे चाट लें ऊपर से गाय का दूध हल्का गर्म चीनी डालकर पी जायें। अब दूसरे दिन 2 लहसुन की चटनी चाट कर दूध पी जायें। तीसरे दिन तीन लहसुन, चौथे दिन चार कली इसी तरह से ग्यारह दिन तक 11 लहसुन पीसकर चाटें व दूध पी जायें। अब बारहवें दिन से 1-1 कली लहसुन की घटाती जायें तथा सेवन की विधि वहीं होगी। एक लहसुन की संख्या आ जाने पर बंद कर दें पीना। इससे हाई ब्लड प्रेशर का असर कम होगा। पक्षाघात का प्रभाव कम होगा। सर का भारी पन ठीक होगा। नींद अच्छी आयेगी। दस्त खुलकर होगा। भूख अच्छी लगेगी। (अगर आप सामान्य तरीके से रोज लहसुन खायें तो इसका खतरा ही नहीं होगा।)
औषधि नं-3
लहसुन व शतावर- 7-8 कली लहसुन, शतावर का चूर्ण 1 तोला दोनों को खरल में डालकर घोंट लें, आधा किलो दूध में शक्कर मिलाकर लहसुन शतावर पिसा हुआ मिलाकर पी जायें इसे लेने पर हल्का सुपाच्य भोजन लें। शरीर के हर अंग का भारी पन ठीक होगा साथ पक्षाघात में फायदा होगा। इसे 31 दिन लगातार लें।
औषधि नं-4
लहसुन,शतावर चूर्ण, असगंध चूर्ण- 1 चाय का बड़ा चशतावर चूर्ण, उतनी ही मात्रा में असगंध चूर्ण दोनों चूर्ण को दूध में मिलाकर पियें साथ दोपहर के भोजन के साथ लहसुन लें। लहसुन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते जायें, रोटी, आंवला, लहसुन का प्रयोग भोजन में अवश्य करें। शरीर की मालिश भी करें इन सभी विधियों से पक्षाघात में जल्दी व सरलता से मरीज ठीक होता है।
औषधि नं-5
लहसुन छीलकर पीस लें 3-4 कली, फिर उसमें उतनी ही मात्रा में शहद मिला कर चाटें। धीरे-धीरे लहसुन की मात्रा बढ़ाते जायें 1-1 कली करके कम से कम 11-11 कली तक पहुंचे साथ बराबर मात्रा में शहद भी मिलाकर चाटें। साथ लहसुन का रस किसी तेल में मिलाकर उस प्रभावित हिस्से पर लेप, मालिश हल्के हाथ से करें। लहसुन के रस को थोड़ा गरम करके लगायें धीरे-धीरे काफी फायदा पहुंचेगा लहसुन से रक्त संचार ठीक तरह से होता है।
औषधि नं-6
दो पोथी पूरी मोटे दाने वाले पीसकर रस निकाल लें अब इसे चार तोला तिल के तेल या सरसों के तेल में मिलाकर पकायें, जब सिर्फ तेल रह जाये तो छानकर इस तेल से सुबह, शाम मालिश करें लकवा, वात रोग मिट जायेगा। अगर आप तिल का तेल इस्तेमाल करें ज्यादा अच्छा होगा।
औषधि नं-7
पक्षाघात के रोगी को आप लहसुन की चटनी को मख्खन के समभाग के साथ भी दे सकते हैं(लहसुन मख्खन बराबर मात्रा) में। यह सुरक्षित योग है इसे प्रातः सांय दोनों समय प्रयोग कर सकते हैं।

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किडनी को साफ करने के लिए यह खाएं

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अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिये किडनियों का सही होना बहुत जरुर है। अगर आप चाहते हैं कि किडनियां स्‍वस्‍थ्‍य रहें तो उसके लिये कुछ आहार लेने बहुत जरुरी है, जिससे किडनियों का विषैला पदार्थ बाहर निकल जाए। ऐसे आहार को खाने से किडनी में स्‍टोन होने की संभावना भी कम हो जाती है।


जामुन/करौंदा: इनमें बहुत सारा एंटी ऑक्‍सीडेंट पाया जाता है। यह किडनी से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है, जिसमें से करौंदा सबसे बेस्‍ट माना जाता है। इसमें यूरिक एसिड और यूरिया को निकालने की क्षमता होती है।
धनिया: यह किडनी में स्‍टोन के ट्रीटमेंट के लिये भी बहुत उपयुक्‍त मानी जाती है। यह किडनी रोग की दवाइयों में भी इस्‍तमाल की जाती है। आप इसे अपने भोजन में इस्‍माल कर सकते हैं।
अदरक : यह अपने सफाई के गुणों की वजह से जाना जाता है। यह शरीर में खून की सफाई और किडनी से विषैले तत्‍वों को बाहर निकालता है। यह खास कर मधुमेह रोगियों के लिये बहुत ही लाभकारी होता है क्‍योंकि यह उनकी किडनियों को स्‍वस्‍थ्‍य रखता है।
हल्‍दी: अगर आपको अपनी किडनी साफ करनी है तो हल्‍दी खाइये। इसे अपने भोजन में डाल कर अथवा छोटा टुकडा़ ऐसे ही खा जाएं क्‍योंकि इसमें एंटीसेप्‍टिक गुण होते हैं।
दही : इसमें अच्‍छे प्रकार का बैक्‍टीरिया पाया जाता है जो कि किडनी के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये अच्‍छा है। यह बैक्‍टीरिया किडनी से गंदगी को बाहर निकालता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
कद्दू : के बीज इस बीज में एंटी ऑक्‍सीडेंट, मिनरल और विटामिन पाए जाते हैं। यह किडनी को किसी भी प्रकार के फ्री रेडिकल से बचा लेते हैं।

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Monday, June 2, 2014

जानिए फ्री सर्विस देने वाली बेवसाइट, पैसा कैसे कमातीं हैं

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सकीना बबवानी

मुंबई में रहने वाली ऋतिका देसाई एक ऑनलाइन पोर्टल को ब्राउज कर रही थीं, जिसने फ्री में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने का ऑफर दिया था। तभी स्क्रीन पर ’10 पेज का टर्म्स एंड कंडीशंस और प्राइवेसी पॉलिसी एग्रीमेंट’ पॉप अप हुआ।
इसकी लिखावट बहुत छोटी थी और वाक्य बहुत लंबे। इसलिए देसाई ने बगैर पढ़े ‘आई एग्री’ बटन दबा दिया और टैक्स फाइल करने में जुट गईं। कुछ दिनों बाद उनके पास फाइनेंशियल प्लानिंग फर्म्स की ओर से बहुत ज्यादा कॉल आने लगीं। बैंकों की ओर से भी इनवेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स के ऑफर आने लगे।
ऋतिका ने बताया, ‘पहले मैंने सोचा कि यह टेली-मार्केटिंग है। हालांकि जब इनमें से कुछ ने मेरे बैंक एकाउंट नंबर का जिक्र किया, तब मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ हुई है।’ एक कॉलर से पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि उसे ऋतिका के बारे में जानकारी टैक्स फाइलिंग पोर्टल से मिली है। इसके बाद उन्होंने उस पोर्टल को फोन किया। वहां से उन्हें बताया गया कि ऋतिका ने पोर्टल को अपनी इंफॉर्मेशन शेयर करने का अधिकार दिया है। ऋतिका ने कहा, ‘दरअसल ‘आई एग्री’ बटन मैंने ही क्लिक किया था, इसलिए मैं उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकती थी।’
ऋतिका जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो वेबसाइट पर यूजर एग्रीमेंट्स बगैर पढ़े स्वीकार कर लेते हैं और इस तरह से कई अधिकार गंवा बैठते हैं। गोयनका लॉ एसोसिएट्स के एडवोकेट रवि गोयनका ने बताया, ‘लोगों को लगता है कि इन एग्रीमेंट्स से उनका नुकसान नहीं होगा। ये डॉक्युमेंट्स इतने लंबे और बोरिंग होते हैं कि इन्हें पूरा पढ़ना बहुत मुश्किल होता है।’ ऐसे में आपको क्या करना चाहिए?
किन बातों का ख्याल रखें?
आदर्श स्थिति तो यही है कि आप यूजर एग्रीमेंट की हर लाइन पढ़ें। अगर आपको यह उबाऊ लगता है, तो हम यहां कुछ टिप्स दे रहे हैं कि आपको किन बातों पर अपनी हामी भरनी चाहिए। पहला, जो भी बातें बोल्ड में लिखी हों, हाइलाइटेड हों या कैप्स में लिखी हों, उन्हें जरूर पढ़ें। अगर टेक्स्ट हाइलाइट किया गया है, तो इसका मतलब यह है कि वह इंपॉर्टेंट है। दूसरा, जो क्लॉज आपके लिए सबसे जरूरी हों, उन्हें CTRL + F ऑप्शन के साथ सर्च करिए। इसके लिए आपको कीवर्ड टाइप करने होंगे। इससे आप सीधे उन क्लॉज तक पहुंच सकते हैं, जो आपके लिए मायने रखते हैं।
अगर आप किसी वेबसाइट के जरिए सर्विस ले रहे हों, तो सबसे पहले अपने और वेबसाइट के ओनरशिप राइट्स को समझना जरूरी होता है। मिसाल के लिए, अगर आप डॉक्युमेंट्स या फोटो शेयर करने के लिए किसी वेबसाइट का इस्तेमाल कर रहें हों, तो आपको पता होना चाहिए कि इन पर वेबसाइट के राइट्स हैं या नहीं? कुछ यूजर एग्रीमेंट्स इस तरह से तैयार किए जाते हैं, जिनसे आपके वर्क को होस्ट करने वाली वेबसाइट को उसे री-प्रॉड्यूस करने का अधिकार मिलता है।
कुछ सोशल नेटवर्किंग साइट्स आपके फोटो का कमर्शियल इस्तेमाल करने का राइट अपने पास रखते हैं। ओनरशिप के अलावा आपको वेबसाइट के राइट्स भी समझने चाहिए, खासतौर पर थर्ड पार्टी से आपकी इंफॉर्मेशन शेयर किए जाने के बारे में। मिसाल के लिए गूगल के टर्म्स ऑफ सर्विसेज में एक पूरा सेक्शन ‘योर कंटेंट इन आवर सर्विस’ पर है। इसमें सर्विस प्रोवाइडर के आपके कंटेंट पर राइट्स के बारे में बताया गया है। इसमें एक सेक्शन सर्विस के मिसयूज के बारे में भी है। अगर आप इस नियम के खिलाफ जाकर कुछ करते हैं, तो कंपनी आप पर मुकदमा कर सकती है।
अगर आप ऑनलाइन प्रॉडक्ट्स खरीद रहे हैं , तो आपको उन प्वाइंट्स पर ध्यान देना होगा , जो सर्विस से अलग होते हैं। डिस्क्लेमर पर ध्यान दीजिए। इसमें अक्सर लिखा रहता है कि प्रॉडक्ट अगर डैमेज्ड या सब – स्टैंडर्ड है , तो उसके लिए पोर्टल जवाबदेह नहीं होगा। वेबसाइट की पेमेंट पॉलिसी समझिए।

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