Thursday, April 16, 2015

मरते समय बुद्धिमान मनुष्य को क्या करना चाहिए?

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श्रीभग्वद्गीता में सुंदर उपाख्यान आता है। 

 सात दिन में तक्षक सांप के काटने से अपनी मृत्यु होने से पूर्व राजा परीक्षित ने शुकदेव से कई प्रश्न पूछे। एक प्रश्न में वे जिज्ञासा करते हैं कि - मरते समय बुद्धिमान मनुष्य को क्या करना चाहिए? 

शुकदेव ने कहा - जो विशिष्ट ज्ञान  चाहते हैं, उन्हें बृहस्पति का स्मरण करना चाहिए।

विशेष शक्ति चाहने वाले को इंद्र का स्मरण, सन्तानवान होने के लिए प्रजापति का स्मरण, सुंदर और आकर्षक दिखने की चाह रखने वाले के लिए अग्निदेव,का स्मरण, वीरता के लिए रुद्रका स्मरण, लक्ष्मी की इच्छा वाले को मायादेवी का स्मरण करना चाहिए। 

लंबी आयु के लिए वैद्य अश्विनी कुमार का स्मरण, सुंदरता के लिए गंधर्व, परिवार सुख के लिए पार्वतीका स्मरण, प्रतिष्ठा के लिए पृथ्वी-आकाश का स्मरण, विद्या के लिए शिव का स्मरण करना चाहिए चाहिए।

गीता प्रेस से प्रकाशित कल्याण पत्रिका में अजामिल की कथा का वर्णन किया गया है--->>>

 एक बार खाट पर लेटा हुआ अजामिल अपने बीते दिनों को याद कर रहा था। एक सुंदर स्त्री के रुप पर मोहित होकर इसने अपनी पतिव्रता पत्नी को छोड़ दिया। स्त्री के रुप जाल में उलझकर सारे अनैतिक काम किया ताकि वह प्रसन्न रहे। माता-पिता के समझाने पर उनका भी अपमान किया।

अजामिल को उस समय युवावस्था में किए सारे पाप याद रहे थे। अजामिल की उल्टी सांसें चलने लगी। सभी रिश्तेदार बेटे उसके सामने आकर बैठे थे। अजामिल ने देखा कि उसका छोटा बेटा नारायण पास में नहीं है। उसे अपने छोटे बेटे को पुकारा-- नारायण नारायण। 

इतने में ही अजामिल  के प्राण निकल गए। यमदूत अजामिल  की आत्मा को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाने लगे। 

शंख, चक्र, गदा धारण किए नारायण के समान दिखने वाले नारायण के सेवक वहां पहुंच गए। भगवान नारायण के सेवकों ने यमदूतों के बंधन से अजामिल को मुक्त करवाया। विष्णु के दूतों ने यमदूतों से कहा कि अजामिल ने मरते समय अपने पुत्र नारायण को पुकारा है।

 अजामिल ने मरते समय अनजाने में ही भगवान नारायण का नाम लिया है इससे अजामिल जीवन भर किए हुए पापों से मुक्त हो गया है और विष्णु लोक में स्थान पाने का अधिकारी बन गया है। 

शास्त्रों में कहा भी गया है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय भगवान का नाम लेता है उसे यमदूतों का भय नहीं रहता है। इसलिए लोग अपनी संतान का नाम किसी देवी देवता के नाम पर रखते हैं। 


पुनर्जन्म की घटनाएं


From before web link --

http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/lifestyle/dead-girl-return-alive-after-many-years-399173.html

जयपुर। पुनर्जन्म की कई घटनाएं आपने देखी होंगी लेकिन ये घटना थोड़ी अजीब है जो आपको हैरान कर देगी। दरअसल, एक मृत लड़की 24 साल बाद जिंदा होकर लौटी है।

इस युवती की दास्तान भी किसी फिल्मी स्टोरी की तरह लेकिन सच्ची घटना है। सर्पदंश से मरी महिला 24 साल बाद जिंदा घर लौट आई, मगर बदले हुए नाम के साथ।

ये मामला है जौनपुर की एक महिला का, जिसे करीब 24 साल पहले पांच साल की उम्र में खेलते समय जहरीले सांप ने काट लिया था। उसके शव को सई नदी के किनारे दफन कर दिया था, लेकिन अब वह जिंदा होकर अपने मां-बाप के सामने आ गई है, जिसे देख हर कोई सन्न रह गया।

इंदू नाम की इस लड़की को 9 जून 1990 को घर के सामने खेलते समय जहरीले सांप ने काट लिया था। उसकी जान बचाने के लिए परिजन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। 

परिजनों ने उसके शव को सई नदी के किनारे दफन कर दिया। दफन होने के दूसरे दिन बाद नदी में बाढ़ आ गई, जिसमें बहकर मृत बच्ची लगभग 25 किलोमीटर दूर रामदयालगंज पहुंच गई और वहां जिंदा हो गई।

वो नदी के किनारे रो रही थी, आवाज सुनकर गोवर्धन नाम का एक शख्स उसे अपने घर ले आए और उसका नाम पुष्पा रखकर पालन- पोषण शुरू कर दिया। 

गोवर्धन को कोई संतान नहीं थी, इसलिए पुष्पा को अपने कलेजे के टुकड़े की तरह रखते हुए उसकी शादी भी क र दी। एक दिन उसने अपने किसी करीबी रिश्तेदार से चर्चा की कि उसके असली मां-बाप ने उसे बाढ़ के पानी में फेंक दिया था।

संयोगवश वह रिश्तेदार उसी गांव का निकला। उसने जाकर सारी दास्तां लड़की के मां-बाप को बताई। वो पुष्पा के घर पहुंचे और गोवर्धन से बातचीत की।

गोवर्धन ने उन्हें पुष्पा के मिलने की कहानी बता दी। पुष्पा के शरीर पर निशान के आधार पर मां ने उसे अपनी बेटी इंदू के रूप में पहचान लिया। इस घटना की जानकारी जब आसपास के लोगों को हुई तो वहां पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी।


From below weblink -
http://tarunmitra.in/news.php?id=1020&title=These%20are%20the%20true%20events%20Reborn!#.VS_eZtyUe14

जूनागढ़। हिंदू धर्म में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं लेकिन विज्ञान इनमें से कई बातों को नहीं मानता। हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता भी है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। कई लोग पुनर्जन्म को कोरी बकवास मानते हैं, लेकिन पुनर्जन्म को लेकर कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिससे कि इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। ताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक परलोक और पुनर्जन्मांक में ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जिससे पुनर्जन्म की मान्यता सच प्रतीत होती है। आज हम आपको इसी पुस्तक में लिखी पुनर्जन्म से जुड़ी कुछ ऐसी ही घटनाओं के बारे में बता रहे हैं। सन 1960 में प्रवीण चंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की। जानकारी मिली कि जूनागढ़ के गोकुलदास ठक्कर की बेटी गीता की मृत्यु अक्टूबर 1559 में हुई थी। उस समय वह ढाई साल की थी। वजुभाई शाह 1965 में अपने कुछ रिश्तेदारों और राजूल को लेकर जूनागढ़ आए। यहां राजून ने अपने पूर्वजन्म के माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को पहचान लिया। राजूल ने अपना घर और वह मंदिर भी पहचान लिया जहां वह अपनी मां के साथ पूजा करने जाती थी। यह घटना सन 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बी. एल. वार्ष्णेय  के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा। प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आने लगी। संयोगवश उस दिन प्रकाश की मुलाकात अपने पूर्वजन्म के पिता भोलानाथ जैन से हो गई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्वजन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई। सन 1961 में भोलानाथ जैन का छत्ता गांव जाना हुआ। वहां उन्हें पता चला कि यहां प्रकाश नामक का कोई लड़का उनके मृत पुत्र निर्मल के बारे में बातें करता है। यह सुनकर वे वार्ष्णेय परिवार में गए। प्रकाश ने फौरन उन्हें अपने पूर्वजन्म के पिता के रूप में पहचान लिया। उसने अपने पिता को कई ऐसी बातें बताई जो सिर्फ उनका बेटा निर्मल ही जानता था। यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरू कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।  एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे। बाद में पता चला कि श्री चतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी विश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।

FOR MORE INCIDENTS - PLEASE READ BELOW BLOG-

http://www.ajabgjab.com/2014/05/10-real-incident-of-reincarnation.html



Friday, April 3, 2015

आज शनिवार, 4 अप्रैल से वैशाख मास प्रारंभ हो रहा है।

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4 अप्रैल से सुबह जल्दी नहाएं और करें ये उपाय, दूर होगी दरिद्रता

GOOD ARTICLE FROM DAINIK BHASKAR DOT COM

http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-RAN-importance-of-vaishakh-month-4951974-PHO.html?seq=2

हिन्दी पंचांग के अनुसार शनिवार, 4 अप्रैल से वैशाख मास प्रारंभ हो रहा है। ये माह 4 मई तक रहेगा। इस माह में भगवान विष्णु का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। वैशाख मास स्नान आरंभ हो जाता है। स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है तथा व्रत रखता है, वह भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है। श्रीहरि की कृपा से घर की दरिद्रता दूर हो सकती है। सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं और इस मास में जल दान का विशेष महत्व है।
स्कंदपुराण में उल्लेख है कि महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इस मास में व्रत करने व्यक्ति को प्रतिदिन सूर्योदय से पहले किसी तीर्थ स्थान, सरोवर, नदी या कुएं पर जाकर या घर पर ही स्नान करना चाहिए। घर स्नान करते समय पवित्र नदियों का नाम जपना चाहिए। स्नान के बाद सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप करें-
वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण:।
अध्यं तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।
वैशाख मास में करना चाहिए ये उपाय
1. वैशाख व्रत की कथा सुनना चाहिए।
2. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करना चाहिए।
3. व्रत करने वाले व्यक्ति को एक समय भोजन करना चाहिए।
4. वैशाख मास में जल दान का विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो इस माह में प्याऊ की स्थापना करवाएं या किसी प्याऊ में मटके का दान करें।
5. किसी जरुरतमंद व्यक्ति को पंखा, खरबूजा, अन्य फल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।


हिन्दी पंचांग के अनुसार दूसरा माह है वैशाख
हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र मास के बाद दूसरा वैशाख मास है। इस माह को बहुत पवित्र और पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इसका संबंध कई देव अवतारों से है। प्राचीन काल में इस माह के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के नर-नारायण, परशुराम, नृसिंह और ह्ययग्रीव अवतार हुए हैं। शुक्ल पक्ष की नवमी को माता सीता धरती से प्रकट हुई थीं। चार धाम में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट वैशाख माह की अक्षय तृतीया से ही खुलते हैं। वैशाख के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकलती है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर देववृक्ष वट की पूजा की जाती है। इस माह में किए गए दान, स्नान, जप, यज्ञ आदि शुभ कर्मों से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु के पूजन की सामान्य विधि...
वैशाख माह में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। किसी ब्राह्मण की मदद से विधि-विधान से भगवान विष्णु का पूजन किया जा सकता है। यदि आप स्वयं पूजन करना चाहते हैं तो ये है भगवान विष्णु पूजन की सामान्य विधि...
हर रोज सुबह स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के मंदिर में ही भगवान विष्णु की पूजा करें। मिठाई का नैवेद्य, चावल, पीले फूल व धूप, दीप आदि पूजन सामग्रियों का उपयोग करते हुए पूजा करें।
पूजन में मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जप करें। मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें।

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