Wednesday, November 26, 2014

भृगु संहिता पद्धति:आकलन

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महर्षियों ने दिव्य दृष्टि, सूक्ष्म प्रज्ञा, विस्तृत ज्ञान द्वारा शरीरस्थ सौर मंडल का अध्ययन, मनन, अन्वेषण, पर्यवेक्षण, अवलोकन तदनुसार आकाशीय सौर मंडल की व्यवस्था की। उन ग्रहों के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया। कालांतर में ज्योतिष विद्या का प्रचार‍ प्रसार हुआ। इस समय भृगु संहिता उपलब्ध नहीं है बल्कि भृगु संहिता के नाम से कुछ ग्रंथ यत्र ‍तत्र अपूर्ण प्राप्त हैं ।

जातक के भविष्य कथन को लेकर भृगुसंहिता जितना चर्चित ग्रंथ है, उतना ही विवादास्पद भी। कुछ दैवज्ञ तो इस तरह के किसी ग्रंथ को ही नकार देते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, इसकी परीक्षा के लिए जब महर्षि भृगु ने विश्वपालक श्रीविष्णु के वक्षस्थल पर प्रहार किया, तो पास बैठी विष्णुपत्नी, धनदेवी महालक्ष्मी ने भृगु को शाप दे दिया कि अब वे किसी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी। परिणामस्वरूप सरस्वती पुत्र ब्राह्मण सदैव दरिद्र ही रहेंगे। अनुश्रुति है कि उस समय महर्षि भृगृ की रचना ‘ज्योतिष संहिता’ अपनी पूर्णता के अंतिम चरण पर थी, इसलिए उन्होंने कह दिया, ‘देवी लक्ष्मी, आपके कथन को यह ग्रंथ निरर्थक कर देगा।’ लेकिन महालक्ष्मी ने भृगु को सचेत किया कि इसके फलादेश की सत्यता आधी रह जाएगी। लक्ष्मी के इन वचनों ने भृगु के अहंकार को झकझोर दिया। वे लक्ष्मी को शाप दें, इससे पहले विष्णु ने भृगु से कहा, ‘महर्षि आप शांत हों! आप एक नए संहिता ग्रंथ की रचना करें। इस कार्य के लिए मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं।’ तब तक लक्ष्मी भी शांत हो गईं थीं। उन्हें ज्ञात हो गया था कि महर्षि ने पदप्रहार अपमान की दृष्टि से नहीं, परीक्षा के लिए किया था। विष्णु के कथनानुसार, भृगु ने जिस संहिता ग्रंथ की रचना की वही जगत में ‘भृगुसंहिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान की संपूर्ण जानकारी देने वाला यह ग्रंथ भृगु और उनके पुत्र शुक्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूप में है ।
एक किंवदंती के अनुसार, लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व काठमांडू स्थित एक पुस्तकालय से इस संहिता के लगभग दो लाख पृष्ठों को एक ब्राह्मण हाथ से लिखकर होशियारपुर (पंजाब) के टूटो माजरा गांव आया था। वैसे होशियारपुर के कुछ ज्योतिषी असली भृगुसंहिता के अपने पास होने का दावा करते हैं। मान्यता है कि इस ग्रंथ में विश्व के प्रत्येक जातक की जन्मकुंडली है और यदि वह मिल जाती है, तो जातक के जीवन के तीनों कालों की जानकारी यथार्थ रूप में प्राप्त हो सकती है। बाजार में ‘भृगु संहिता’ नाम से जो ग्रंथ उपलब्ध है, वह मूल संहिता ग्रंथ की एक झलक मात्र देते हैं। इनमें जन्मकुंडली में ग्रहों के योगों की संभावनाओं पर ही विशेषरूप से प्रकाश डाला गया है। इनमें कुंडली संख्या पंद्रह सौ से दो हजार तक है। कहते हैं कि इन कुंडलियों पर चिंतन-मनन करने से दैवज्ञ भविष्य फल कथन करने में निष्णात तो हो ही जाता है ! 



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