Saturday, November 29, 2014

परिवार में रहते हुए भी बना जा सकता है साधु

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http://www.amarujala.com/news/spirituality/meditation/you-can-find-god-with-live-in-family/

GOOD ARTICLE 

खुद को दिलासा देने के लिए कहें अथवा अफसोस जताने के लिए लेकिन बहुत से लोग ऐसे मिल जाएंगे जो कहेंगे कि हम घर परिवार वाले लोग हैं सब कुछ छोड़कर साधु तो नहीं बन सकते।

जबकि, सच यह है कि साधु बनने के लिए परिवार और दुनिया से विमुख होने की जरूरत नहीं है। साधु तो घर परिवार में रहते हुए, पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी बना जा सकता है।

साधु का मतलब वन में निवास करने वाला नहीं है, साधु का अर्थ है साधना करने वाला। साधना है तात्पर्य है मन, वाणी, इन्द्रिय भोग, काम और क्रोध को अपने वश में रखना न कि इनके वश में हो जाना।

जिनका मन घर परिवार में रहते हुए भी नियंत्रण में है, काम और क्रोध से दूषित नहीं है वह सांसारिक जीवन में कहीं भी रहे साधु कहलाने योग्य है।

नारद पुराण में एक प्रसंग है कि ब्रह्मा जी ने आठ मानस पुत्रों को जन्म दिया। इनमें नारद मुनि भी एक थे। ब्रह्मा जी के सात पुत्रों ने विवाह करके गृहस्थ जीवन बिताना स्वीकार कर लिया। लेकिन नारद मुनि ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने से मना कर दिया।

ब्रह्मा जी को इस बात से बड़ा क्रोध हुआ और नारद जी को शाप दे दिया। अगर गृहस्थ जीवन पाप होता और वैराग्य पुण्य तो ब्रह्मा जी नारद को नहीं अन्य सात पुत्रों को शाप देते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

वास्तव में गृहस्थ जीवन में रहते हुए साधु बने रहना सबसे कठिन तपस्या है। सांसारिक जीवन का त्याग करके कर्म से मुक्त होने का प्रयास करना पाप है। यही कारण है कि प्राचीन काल के कई सिद ऋषि मुनियों ने विवाह किया।

ईश्वर मनुष्य को वैवाहिक जीवन और गृहस्थी का महत्व समझाना चाहता है न कि गृहस्थी से भागने की बात सीखाता है। अगर वह ऐसा चाहता तो हर देवी देवता अलग होते, सभी अविवाहित होते।

लेकिन ऐसा नहीं है शिव-पार्वती, विष्णु लक्ष्मी, राम-सीता, कृष्ण-रूक्मिणी सभी युगल हैं, यही बताने के लिए कि संसार त्यागने के लिए नहीं है। गीता में भगवान ने कहा कि जीव कर्म बंधन में बंध हुआ है और उसे बार-बार कर्म में बंधकर आवागमन में उलझना है।

जो व्यक्ति ईश्वर के इस विधान को समझकर कर्म करता हुए साधु बना रहता है वास्तव में वही परमगति और मुक्ति का भागी होता है। परिवार और कर्तव्य का त्याग करने वाला नहीं। जो कर्तव्य से भागने का प्रयास करता है वह बार-बार आवागमन के चक्र में घूमता रहता है।



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