Wednesday, November 26, 2014

सम्मोहन --कब, क्यो और कैसे ?

Today's Blog

श्री श्रीकांत पाराशर जी का अद्भुत आलेख 


वीणा के तार यदि ढीले हो जाएं तो उससे कैसे स्वर निकलेंगे, यह कोई भी समझ सकता है। इसी प्रकार यदि मनुष्य के जीवन को सुन्दर स्वर देने वाले सम्मोहन के तारों को ढीला छोड दिया जाए तो उसके जीवन संगीत की भी वही दशा होनी है जो ढीले तारों वाली वीणा से निकले संगीत की होती है। इसका कारण यह है कि सम्मोहन वह शक्ति है, वह कला ंहै जो मनुष्य के जीवन के सुरों को माधुर्य प्रदान करती है। दरअसल सम्मोहन क्या है यह तो ठीक से कोई दर्शन शास्त्र का ज्ञाता ही बता सकता है परन्तु मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि हम जो कुछ ंहैं, जो कुछ भी कर रहे हैं वह हमारी चित्त दशा है जिसे दूसरे शब्दों में सम्मोहन कहा जा सकता है। इसे और बोलचाल की भाषा में माया भी कहा जा सकता है। माया से वशीभूत होकर ही लोगों द्वारा जगत का निर्माण हुआ है और यह जगत पूरी जादूगरी है। कोई भी दार्शनिक शायद इस बात को इसी प्रकार से परिभाषित करेगा।
हमारे मन में किसी भी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति प्रगाढ भाव पैदा हो जाता है उसे सम्मोहन की ही संज्ञा दी जाएगी। यों तो यह गहन अध्ययन और चिंतन का विषय है परन्तु ऊपरी तौर पर भी इस मुद्दे पर ष्टिपात करें तो हमें कुछ न कुछ इससे हासिल हो सकता है।
सरल तरीके से सम्मोहन की बात करते हैं। जब बच्चा पैदा होता है तो उसे कुछ पता नहीं होता कि उसका पिता कौन है, उसकी मां कौन है, घर परिवार में दादा-दादी, चाचा-ताऊ, भाई-बहिन कौन हैं। धीरे-धीरे उनके प्रति सम्मोहन के कारण वह सब कुछ समझता सीखता चला जाता है। अपने आप उसके मन के तार अपने माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों से जुडने लगते हैं। यह तार सम्मोहन के तार होते हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि यदि किसी बच्चे को कोई तकलीफ हो तो उसकी मां को उसका अहसास सैकडाें मील दूर रहते हुए भी हो जाता है क्योंकि बच्चे से मां का गहरा सम्मोहन होता है। हमने पुरानी फिल्मों में ऐसी कितनी ही कहानियां देखी हैं। आपने भी फिल्मों में, टीवी पर धारावाहिकों में, किताबों में ऐसी कहानियां देखी और पढी होंगी। ऐसा नहीं है कि इनमें असत्यता ही हो, कुछ काल्पनिक भी हो सकती हैं परन्तु बहुत से जानकारों ने तो इस मामले में प्रयोग भी करके देखे हैं। हम भी अपने दैनंदिन जीवन में इस सम्मोहन की अनुभूति करते हैं इसलिए इसकी विश्वनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता।



सम्मोहन से संबंधित एक तर्क किसी दार्शनिक के साहित्य में पढने को मिला था। बात में मुझे भी दम लगा। एक महिला कहीं मर जाए तो किसी व्यक्ति को उससे कोई पीडा नहीं होगी। ऐसी सैकडाें मौतें होती हैं। परन्तु यदि किसी व्यक्ति का विवाह हो गया, सात फेरे ले लिए, बैंड बाजे के साथ धूमधाम से बारात की आव भगत हुई, पंडित-पुरोहितों ने मंत्रोच्चारण किए, आशीर्वाद समारोह आयोजित हुआ और वही महिला एक सामान्य औरत की बजाय अब किसी की पत्नी हो गई। अब यदि वह मर जाती है तो व्यक्ति, यानी कि उसका पति छाती पीट-पीट कर रोता है क्योंकि अब वह महिला नहीं रह गई, पत्नी हो गई। अब वह सम्मोहन के सूत्र में बंध गई। यह बात अलग हो सकती है कि इस सम्मोहन को स्थापित करने में फेरों से लेकर आशीर्वाद समारोह तक के सभी कार्यक्रमों, गतिविधियों की अहम भूमिका होती हो परन्तु इस सम्मोहन के कारण ही एक व्यक्ति और एक महिला के बीच ऐसा बंधन बंध जाता है कि एक की हानि से दूसरे को कष्ट पहुंचता है। यह नहीं कहा जाना चाहिए कि सम्मोहन का तार केवल मां-बेटे के बीच में होता है। पति-पत्नी का उदाहरण ऊपर दिया ही है। इसी प्रकार मित्रों, रिश्तेदारों के बीच में भी यह सम्मोहन का जादू काम करता है। जहां भी संबंधों में निकटता है, मधुरता है, वहीं सम्मोहन का सेतु कायम है, तार बंधा हुआ है। जहां संबंधों में सम्मोहन कम हो रहा है वहीं रिश्ता में कटुता पैदा होने लगी है।
पहले यह बीमारी पश्चिमी देशों में ही थी। उधर से ही शुरुआत हुई। या तो वहां सम्मोहन था ही नहीं या फिर था तो जल्दी ही कम होने लगा और उसके परिणाम सामने आने लगे पिता-पुत्र के बीच झगडाें के रूप में, पति-पत्नी के बीच तलाक के रूप में, घनिष्ठ मित्रों के बीच हत्याओं की घटनाओं के रूप में। पूरब के देशों में एक पारिवारिक सम्मोहन था। अब उस सम्मोहन के तार ढीले होते दिखाई दे रहे हैं। पश्चिम के देशों में पिता पिट रहा हो तो बेटा उसे बचाने का तत्काल प्रयास नहंीं करता है। वह पहले सोचता है कि वास्तव में गलती किसकी है, बाप की या पीटने वाले की। बाप अपनी गलती के कारण पिट रहा हो तो बेटा उसे पिटने देता है, बचाता नहीं। हमारे देश में ऐसा भाव नहीं था। पिता-पुत्र के सम्मोहन के तार इस कदर जुडे रहते थे कि बाप की अगर गलती भी हो तब भी उसकी ओर कोई आंख उठाकर देखे तो बेटा अपनी जान देने को भी उतारू रहता था। मजाल है कि कोई बेटे के रहते हुए बाप को पीट दे।
  आज भी सम्मोहन के ये तार हमारे देश के लोगों में पूरी तरह से टूटे तो नहीं हैं परन्तु ढीले अवश्य पड ग़ए हैं। पिता-पुत्र के बीच तकरार, पति-पत्नी के बीच तलाक, भाई-भाई के बीच अविश्वास आदि के तेजी से पनपने का कारण ही ंहै कि इन रिश्तों के बीच जो सम्मोहन का सेतु है वह कमजोर हुआ है। सम्मोहन के तारों के ढीले होते चले जाने से भविष्य में हालात क्या होंगे, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। आने वाले कुछ वर्षों में यदि पूरी तरह से पश्चिमी देशों का सा माहौल हमारे यहां भी निर्मित हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि यदि अंधी गुफा की ओर जाने वाली पगडंडी पर हम बढ चले हों और रास्ते में भी हम अपने दिमाग पर जोर नहीं डालें कि हम जिस रास्ते पर चल रहे ंहैं वह हमें कहां ले जाएगा, वह रास्ता हमारे लिए सही है या नहीं, उस पर और आगे बढने में हमारी भलाई है या नहीं, रास्ता बीच में छोड क़ोई दूसरी पगडंडी जो प्रकाश की ओर ले जाए उसको पकडना है  या नहीं, तब तो वह रास्ता उस अंधकूप तक ले ही जाएगा जहां तक ले जाने के लिए वह बना है। सोचना तो व्यक्ति को है कि जन्म के साथ ही जिस सम्मोहन के तारों ने जीवन को मधुर संगीत देने की शुरुआत की उसे ही छोड देना कहां की बुध्दिमानी है। जीवन के संगीत को सही ढंग से झंकृत करना है तो संबंधों के बीच ढीले होते सम्मोहन के तारों को कसना जरूरी है और इस कार्य के लिए परिस्थितियों के बिगडने का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि तत्काल यह कार्य करना चाहिए। एक अच्छा संगीतज्ञ, एक अच्छा कलाकार तो अपने वाद्य के तारों को हमेशा दुरुस्त ही रखता है।


No comments:

Post a Comment