Thursday, April 16, 2015

पुनर्जन्म की घटनाएं


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http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/lifestyle/dead-girl-return-alive-after-many-years-399173.html

जयपुर। पुनर्जन्म की कई घटनाएं आपने देखी होंगी लेकिन ये घटना थोड़ी अजीब है जो आपको हैरान कर देगी। दरअसल, एक मृत लड़की 24 साल बाद जिंदा होकर लौटी है।

इस युवती की दास्तान भी किसी फिल्मी स्टोरी की तरह लेकिन सच्ची घटना है। सर्पदंश से मरी महिला 24 साल बाद जिंदा घर लौट आई, मगर बदले हुए नाम के साथ।

ये मामला है जौनपुर की एक महिला का, जिसे करीब 24 साल पहले पांच साल की उम्र में खेलते समय जहरीले सांप ने काट लिया था। उसके शव को सई नदी के किनारे दफन कर दिया था, लेकिन अब वह जिंदा होकर अपने मां-बाप के सामने आ गई है, जिसे देख हर कोई सन्न रह गया।

इंदू नाम की इस लड़की को 9 जून 1990 को घर के सामने खेलते समय जहरीले सांप ने काट लिया था। उसकी जान बचाने के लिए परिजन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। 

परिजनों ने उसके शव को सई नदी के किनारे दफन कर दिया। दफन होने के दूसरे दिन बाद नदी में बाढ़ आ गई, जिसमें बहकर मृत बच्ची लगभग 25 किलोमीटर दूर रामदयालगंज पहुंच गई और वहां जिंदा हो गई।

वो नदी के किनारे रो रही थी, आवाज सुनकर गोवर्धन नाम का एक शख्स उसे अपने घर ले आए और उसका नाम पुष्पा रखकर पालन- पोषण शुरू कर दिया। 

गोवर्धन को कोई संतान नहीं थी, इसलिए पुष्पा को अपने कलेजे के टुकड़े की तरह रखते हुए उसकी शादी भी क र दी। एक दिन उसने अपने किसी करीबी रिश्तेदार से चर्चा की कि उसके असली मां-बाप ने उसे बाढ़ के पानी में फेंक दिया था।

संयोगवश वह रिश्तेदार उसी गांव का निकला। उसने जाकर सारी दास्तां लड़की के मां-बाप को बताई। वो पुष्पा के घर पहुंचे और गोवर्धन से बातचीत की।

गोवर्धन ने उन्हें पुष्पा के मिलने की कहानी बता दी। पुष्पा के शरीर पर निशान के आधार पर मां ने उसे अपनी बेटी इंदू के रूप में पहचान लिया। इस घटना की जानकारी जब आसपास के लोगों को हुई तो वहां पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी।


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http://tarunmitra.in/news.php?id=1020&title=These%20are%20the%20true%20events%20Reborn!#.VS_eZtyUe14

जूनागढ़। हिंदू धर्म में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं लेकिन विज्ञान इनमें से कई बातों को नहीं मानता। हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता भी है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। कई लोग पुनर्जन्म को कोरी बकवास मानते हैं, लेकिन पुनर्जन्म को लेकर कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिससे कि इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। ताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक परलोक और पुनर्जन्मांक में ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जिससे पुनर्जन्म की मान्यता सच प्रतीत होती है। आज हम आपको इसी पुस्तक में लिखी पुनर्जन्म से जुड़ी कुछ ऐसी ही घटनाओं के बारे में बता रहे हैं। सन 1960 में प्रवीण चंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की। जानकारी मिली कि जूनागढ़ के गोकुलदास ठक्कर की बेटी गीता की मृत्यु अक्टूबर 1559 में हुई थी। उस समय वह ढाई साल की थी। वजुभाई शाह 1965 में अपने कुछ रिश्तेदारों और राजूल को लेकर जूनागढ़ आए। यहां राजून ने अपने पूर्वजन्म के माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को पहचान लिया। राजूल ने अपना घर और वह मंदिर भी पहचान लिया जहां वह अपनी मां के साथ पूजा करने जाती थी। यह घटना सन 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बी. एल. वार्ष्णेय  के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा। प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आने लगी। संयोगवश उस दिन प्रकाश की मुलाकात अपने पूर्वजन्म के पिता भोलानाथ जैन से हो गई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्वजन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई। सन 1961 में भोलानाथ जैन का छत्ता गांव जाना हुआ। वहां उन्हें पता चला कि यहां प्रकाश नामक का कोई लड़का उनके मृत पुत्र निर्मल के बारे में बातें करता है। यह सुनकर वे वार्ष्णेय परिवार में गए। प्रकाश ने फौरन उन्हें अपने पूर्वजन्म के पिता के रूप में पहचान लिया। उसने अपने पिता को कई ऐसी बातें बताई जो सिर्फ उनका बेटा निर्मल ही जानता था। यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरू कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।  एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे। बाद में पता चला कि श्री चतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी विश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।

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http://www.ajabgjab.com/2014/05/10-real-incident-of-reincarnation.html



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