Friday, June 27, 2014

श्रावण / सावन मास में सोमवार पूजा विधि (Saavan Monday Pooja Vidhi)

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AN ARTICLE FROM ASTROLOGER MR. LOKESH AGARWAL



श्रावण प्रारंभ: 13 जुलाई 2014, दिन रविवार, उत्तराषाढ नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य)

श्रावण का प्रथम सोमवार: 14 जुलाई 2014, 
द्वितीया तिथि, श्रावण नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी चन्द्र), सर्वार्थ सिद्धि योग (सुबह 05:12 - 11:42)

श्रावण का द्वितीय सोमवार: 21 अगस्त 2014, दशमी तिथि, कृतिका नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य) 
श्रावण का तृतीय सोमवार: 28 जुलाई 2014, प्रथमा तिथि, अश्लेशा नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी बुध)
नाग पंचमी : 01 अगस्त 2014, पंचमी तिथि, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी सूर्य)
श्रावण का चतुर्थ सोमवार: 4 अगस्त 2014 , अष्टमी तिथि, स्वाती नक्षत्र (नक्षत्र स्वामी राहु)
श्रावण अंत: 10 अगस्त 2014 

श्रावण / सावन मास में सोमवार पूजा विधि 

अभिषेक सामग्री:
दूध, दही, शहद, घी, बूरा अथवा चीनी, गंगाजल, बेल-पत्र, धतूरा, भांग, चन्दन, केसर, कर्पूर, पुष्प, काले तिल, अक्षत(चावल बिना टूटे), गंध

विधि:
सवेरे जल्दी उठकर नहाकर यथासंभव साफ सफेद वस्त्र पहनें। अगर सोमवार के व्रत रखें तो अति उत्तम होगा। पूजा की सम्पूर्ण सामग्री लेकर शिव मंदिर जाएँ (भक्तगण घर पर भी शिव पूजा कर सकते हैं)। सर्वप्रथम गौरी-गणेश का पूजन करें। 

1. अभिषेक के समय श्रीरुद्राष्‍टकम अथवा शिवतांडवस्‍तोत्रम का पाठ शिव को अत्‍यंत प्रसन्‍नता प्रदान करता है। परन्तु अगर आप इनका पाठ नहीं कर सकते तो "ॐ नमः शिवाय" का ही जप करें। यह शिव का सबसे सुन्दर तथा आसान मंत्र है।
2. सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करें 
3. जलस्नान के बाद शिवलिंग को दूध से स्नान कराएं। फिर से जल से स्नान कराएं।
4. दही स्नान के बाद घी स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं।
5. घी या घृत स्नान के बाद मधु यानी शहद से स्नान कराएं। शहद से स्नान कराकर जल से स्नान कराएं।
6. शहद स्नान के बाद शर्करा या शक्कर से स्नान कराया जाता है। इसके बाद जल स्नान कराएं।
7. आखिर में सभी पांच चीजों को मिलाकर पंचामृत बनाकर स्नान कराएं।
8. पंचामृत स्नान के बाद शुद्धजल से स्नान कराएं।
9. फिर कर्पूर से सुगंधित शीतल जल चढ़ाएं।
10. केसर को चंदन से घिसकर तिलक लगाएं।
11. थोड़े से अक्षत(चावल बिना टूटे) अर्पित करें, काले तिल अर्पित करें
12. पंचामृत पूजा के बाद धतूरा, भांग, बिल्वपत्र, अक्षत, पुष्प और गंध चढ़ावें।
13. इसके बाद धूप, दीप और नैवेद्य भगवान शिव को अर्पित करें।
14.vउसके बाद नंदीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय, कुबेर और कीर्तिमुख का पूजन करें।
15. अंत में पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांग और अपनी कामनाओं के लिए शिव से प्रार्थना करें।

मंत्र:
1. “ॐ नमः शिवाय”

2. “ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l
मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll”

3. “ऊँ त्रयम्बकम यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम, 
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात ॥”


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नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवायः॥



हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार।



मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवायः॥



चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म धारी शिव, आपको नमन है।



शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥



हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।



वषिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥



देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।



यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥



हे यज्ञ स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके य अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है।



पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ 


जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है। 

महादेवं महात्मानं महाध्यानपरायणम्।


महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ।।

शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम्।


शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः।।

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम्।


वामं शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः।।

यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः।


यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः।।

षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ।


शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ।।


चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।

जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।


जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ।।


निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।

त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महेश्वरमत: परम्।।
नमस्तेस्तु महादेव स्थावणे च तत: परम्।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम:।। 
नमस्ते परमानन्द नम: सोमर्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत:।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||


हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।
श्रावण मास में रोग निवारण 

विज्ञान और हम सब यह मानते हैं की सृष्टि तथा मानव शरीर पंच तत्वों के मिश्रण से बना है- अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश एवं जल। विधिवत सृष्टि संचालन तथा मानव शरीर संचालन के लिए इन तत्वों का संतुलन परम आवश्यक है। इन तत्वों के संतुलित रहने पर जिस प्रकार सृष्टि प्रसन्न रहती है उसी प्रकार, मनुष्य प्रसन्न तथा स्वस्थ/निरोगी रहता है। इन्हीं तत्वों के असंतुलित होने पर जिस प्रकार ज्वार-भाटा और अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती हैं उसी प्रकार मनुष्य रोगग्रस्त, चिड़चिड़ा, दुखों से पीड़ित एवं कांतिहीन हो जाता है।किसी भी एक तत्त्व की न्यूनता तथा अधिकता दोनों ही ख़राब है।

ये पँचों तत्व मूलत: ग्रहों, नक्षत्रों से ही नियन्त्रित रहते हैं. अतः अगर हम सामान्य भाषा में बात करें तो ग्रह ही हमारे शरीर को संचालित करते हैं तथा रोग भी उसी संचालन का एक अंग है।

ज्योतिष विज्ञान यह कहता है की अगर श्रावण के महीने में बाबा भोलेनाथ को विशेष रूप से प्रसन्न कर लिया जाए तो व्यक्ति इन पंचतत्वों तथा ग्रहों के असंतुलन के साथ साथ रोगों का भी निवारण कर सकता है।

रोग निवारण हेतु शिव पूजन 

1. श्रावण मास में हर मंगलवार को शिव पूजा (विशेषतः रुद्राभिषेक तथा महामृत्युंजय का जप) करने से रोगों का जल्दी निवारण होता है। याद रखें रोग निवारक पूजा में कनेर के पुष्प शिवजी को अवश्य अर्पित करें

2. किसी भी रोग से पूर्णत: मुक्ति के लिये श्रावण मास के प्रथम सोमवर से प्रत्येक सोमवार को शिव जी को कपूर युक्त जल से अभिषेक करें. अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र का निरंतर जाप करें.
" ऊँ ह्रौं जुं स: ऊँ त्रयम्बकम यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम,
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात स: जुं ह्रौं ऊँ ॥"
इस मंत्र जाप श्रावण मास के पश्चात भी पूरे वर्ष भर करते रहें. अवश्य स्वास्थ्य लाभ होगा.

3. श्रावण मास में हर गुरूवार को विशेष पूजा करने से आयु में वृद्धि होती है।

4. रोग निवारण हेतु महामृत्युंजय मंत्र जप करते हुए शहद से अभिषेक करने से रोग का नाश होता है

5. कुशोदक जल से अभिषेक करने से असाध्य रोग शांत होते हैं

6. दूध से अभिषेक करने से शुगर रोग (मधुमेह) रोग की शांति होती है

7. भगवान शिव के मृत्यंजय मंत्र "ॐ जूं सः" के दस हजार जप करते हुए घी की धारा से शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो मधुमेह (डाइबिटीज) रोग दूर होता है.

8. गाय के घी से अभिषेक करने से आरोग्य लाभ होता है

9. जो व्यक्ति हरी दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करता है उसे दीर्घायु प्राप्त होती है

10. लंबी या लाइलाज बीमारी से तंग हैं तो पंचमुखी शिवलिंग पर तीर्थ का जल अर्पित करने से रोगमुक्त होंगे।

11. ज्वर(बुखार) से पीडि़त होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से तुरंत लाभ मिलता है।

12. नपुंसक व्यक्ति अगर घी से भगवान शिव का अभिषेक करे व ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान हो जाता है और उसे पुरुषत्व की प्राप्ति होती है।

13. किसी अच्छे ज्योतिषी से अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर ये पता करे लें की आपके रोग का कारण कौन सा ग्रह है। उसके पश्च्यात उस ग्रह से सम्बन्धित तुला दान उस ग्रह के दिन/नक्षत्र वाले दिन करें। साथ में शिव रुद्राभिषेक करें तथा महामृत्युंजय जप का जप करें अथवा कराएं। रोग से अवश्य मुक्ति मिलेगी।

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